ब्लैक फंगस (Black Fungus) :
म्युकरमाइकोसिस (Mucormycosis) को ब्लैक फंगस (Black Fungus) या ज़ाइगोमाइकोसिस (Zygomycosis) के नाम से भी जाना जाता है और यह एक गंभीर लेकिन दुर्लभ फंगल संक्रमण है, जो म्युकरमायसिटिस (Mucormycetes) नामक फफूँद (Molds) के कारण होता है। म्युकरमाइकोसिस के लिये उत्तरदायी सबसे सामान्य प्रजाति राइज़ोपस (Rhizopus) प्रजाति और म्यूकर (Mucor) हैं। ये हवा की तुलना में मिट्टी में तथा शीत व बसंत ऋतु की तुलना में ग्रीष्मकाल में अधिक प्रचुरता से पाए जाते हैं और उस समय अधिक प्रभावी होते हैं।
यह मुख्य रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हैं या ऐसी इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं लेते हैं, जो शरीर की रोगाणुओं और बीमारी से लड़ऩे की क्षमता कम करती हैं। ये फंगस साइनस, दिमाग़ और फेफड़ों को प्रभावित करती है और डायबिटीज़ के मरीज़ों या बेहद कमज़ोर इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों जैसे कैंसर या एचआईवी/एड्स के मरीज़ों में ये जानलेवा भी हो सकती है। म्यूकरमाइकोसिस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक हो सकती है।
इसके सामान्य लक्षणों में चेहरे में एक तरफ सूजन और सुन्नता, सिरदर्द, साँस लेने में कठिनाई, बुखार, पेट में दर्द, मतली आदि शामिल हैं। डिसेमिनेटेड म्युकरमाइकोसिस प्रायः उन लोगों में होता है, जो पहले से ही किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हैं, ऐसे में यह जानना मुश्किल हो जाता है कि कौन-से लक्षण म्युकरमाइकोसिस से संबंधित हैं। डिसेमिनेटेड संक्रमण से ग्रसित मरीजों में मानसिक स्थिति में बदलाव या कोमा जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
म्युकरमाइकोसिस (Mucormycosis) के प्रकार:
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- राइनोसेरेब्रल (साइनस और मस्तिष्क) म्युकरमाइकोसिस: यह साइनस (Sinus) में होने वाला एक संक्रमण है, जो मस्तिष्क तक फैल सकता है। अनियंत्रित मधुमेह से ग्रसित और किडनी प्रत्यारोपण कराने वाले लोगों में इसके होने की संभावना अधिक होती है।
- पल्मोनरी (फेफड़ों संबंधी) म्युकरमाइकोसिस: यह कैंसर से पीड़ित लोगों तथा अंग प्रत्यारोपण अथवा स्टेम सेल प्रत्यारोपण कराने वाले लोगों में होने वाले म्युकरमाइकोसिस संक्रमण का सबसे सामान्य प्रकार है।
- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (पाचनतंत्र संबंधी) म्युकरमाइकोसिस: यह वयस्कों की तुलना में छोटे बच्चों (विशेष रूप से 1 माह से कम आयु के अपरिपक्व तथा जन्म के समय कम वज़न वाले शिशुओं) में अधिक होता है। यह ऐसे वयस्कों में भी हो सकता है जिन्होंने एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया हो अथवा सर्जरी करवाई हो या ऐसी दवाओं का सेवन किया हो जो कीटाणुओं और बीमारी से लड़ने के लिये शरीर की क्षमता को कम कर देती हैं।
- क्यूटेनियस (त्वचा संबंधी) म्युकरमाइकोसिस: कवक त्वचा में किसी विच्छेद (सर्जरी या जलने के बाद या अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी आघात के कारण होने वाले) के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। यह उन लोगों जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर नहीं है, में भी पाया जाने वाला सबसे सामान्य प्रकार है।
- डिसेमिनेटेड (प्रसारित) म्युकरमाइकोसिस: इस प्रकार का संक्रमण रक्त प्रवाह के माध्यम से शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में प्रसारित होता है। यद्यपि यह संक्रमण सबसे अधिक मस्तिष्क को प्रभावित करता है लेकिन प्लीहा, हृदय और त्वचा जैसे अन्य भाग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं।
इसका संचरण श्वास, संरोपण (Inoculation) या पर्यावरण में मौजूद बीजाणुओं के अंतर्ग्रहण द्वारा होता है। उदाहरण के लिये बीजाणु श्वास के ज़रिये हवा से शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों या साइनस को संक्रमित कर सकते हैं। म्युकरमाइकोसिस का संचार मानव से मानव तथा मानव और पशुओं के बीच नहीं होता है। यह आमतौर पर उन्हीं लोगों को होता है जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होती हैं या जो ऐसी दवाएँ लेते हैं जिनसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
रोकथाम और इलाज:
- म्युकरमाइकोसिस (Black Fungus) की रोकथाम के लिये अभी तक कोई टीका विकसित नहीं हुआ है। ऐसे समय में श्वास लेते समय इन कवकीय बीजाणुओं के अंतर्ग्रहण को रोक पाना भी मुश्किल हो जाता है जब ये पर्यावरण में सर्वनिष्ठ हों।
- जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर हो गई है वे कुछ तरीकों द्वारा इस संक्रमण के प्रसार को कम कर सकते हैं।
- इन उपायों में अत्यधिक धूल वाले क्षेत्रों, जैसे- विनिर्माण अथवा उत्खनन क्षेत्रों से दूर रहना, हरिकेन तथा चक्रवात के बाद जल द्वारा क्षतिग्रस्त हुई इमारतों एवं बाढ़ के पानी के सीधे संपर्क में आने से बचना, साथ ही ऐसी सभी गतिविधियों से दूर रहना जहाँ मिट्टी के साथ संपर्क में आने की संभावना हो।
- शुरुआत में ही बीमारी की पहचान तथा चिकित्सीय हस्तक्षेप द्वारा आँखों की रोशनी को जाने से रोका जा सकता है और नाक एवं जबड़े को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
मुख्य तथ्य:
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से ब्लैक फंगस (Black Fungus) संक्रमण (म्यूकर माइकोसिस) को महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत अधिसूच्य बीमारी बनाकर सभी मामलों की सूचना देने का आग्रह किया है। कोरोना महामारी के दौरान अब ब्लैक फंगस चिंता का कारण बन गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के मुताबिक जब कोई बीमारी संक्रमण के जरिये बड़ी संख्या को प्रभावित करती है और फिर इसका प्रकोप सामान्य की अपेक्षा अधिक होता है, तो इसे महामारी घोषित कर दिया जाता है। किसी बीमारी के महामारी होने की घोषणा उसके कारण होने वाली मौतों और पीड़ितों की संख्या पर भी निर्भर करती है।
कोरोना के मरीजों में ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों को देखते हुए हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक,उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान, ओडिशा, बिहार, चंडीगढ़, उत्तराखंड, तेलांगना राज्यों में इस बीमारी को महामारी घोषित कर दिया गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश ने भी इस बीमारी को महामारी घोषित कर दिया है।
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